योगदान पूरा तो सम्मान क्यों आधा-अधूरा जानिये कैसे

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एक प्रचलित लतीफ़ा है। पति जब दफ़्तर से लौटता है तो पाता है कि सारा घर अस्त-व्यस्त है, बच्चे झगड़ रहे हैं, रसोई भी बिखरी पड़ी है। वह पत्नी से पूछता है तो जवाब मिलता है- ‘तुम हमेशा कहते हो न कि आख़िर तुम करती ही क्या हो! तो देख लो, आज मैंने कुछ नहीं किया।’

जहां तक स्त्री के काम की बात है, यह लतीफ़ा वास्तविकता बयां करता है, लेकिन उसकी प्रतिक्रिया विशुद्ध रूप से काल्पनिक है। दरअसल, परिवार के भीतर वह रिश्तों को बनाए रखने को अहमियत देती है, बजाय ख़ुद की अहमियत के, इसलिए आमतौर पर ऐसा कुछ नहीं करती जिससे परिवार पर ज़रा भी असर पड़े।

लेकिन यह बात कई बार घर के भीतर स्त्री के सम्मान और उसके आत्मसम्मान के विरुद्ध हो जाती है। उसे ‘तुम करती ही क्या हो’ जैसी बातें सुननी पड़ती हैं। यहां तक कि बच्चे भी ‘मम्मी, आप नहीं समझोगी, आप तो चुप ही रहो’ सरीखी रूखी टिप्पणियां कर देते हैं। लंबे समय में यह व्यवहार उसके आत्मविश्वास पर भी नकारात्मक असर डालता है और कई अहम मामलों में वह वाक़ई पूरी तरह दूसरों पर निर्भर हो जाती है। इस मामले में पहली ज़िम्मेदारी महिला की है कि वह इस स्थिति को बदलने के प्रयास करे। यह उसके और उसके प्रिय परिवार के हित में होगा। इसके लिए कुछ ठोस क़दम उठाने की ज़रूरत है।

स्पष्ट बात करें और ग़लत को ग़लत कहना सीखें

सबसे पहले यह आवश्यक है कि ग़लत को ग़लत कहना सीखें। यदि पति या बच्चों का कोई व्यवहार खलता है तो उन्हें विनम्रता से, लेकिन स्पष्ट शब्दों में बता दें कि ऐसा व्यवहार/टिप्पणी स्वीकार्य नहीं है। हो सकता है कि वे अब तक अनजाने में ऐसा करते रहे हों और आपका अपमान करने की उनकी कोई मंशा न रहती हो, किंतु आपकी आपत्ति के बाद वे आपकी भावनाओं को समझेंगे। आप आपत्ति उठाने में ज़रा भी छूट न दें। निरंतरता दूसरों के रवैए में तब्दीली लाएगी।

महसूस कराएं कि घर के काम भी महत्वपूर्ण हैं

घर के छोटे-छोटे काम कोई छोटी बातें नहीं हैं। साफ़-सफ़ाई, भोजन बनाना और बच्चों-बुज़ुर्गों की देखभाल- ये सभी काम महत्वपूर्ण हैं। आप सारा बोझ अपने कंधे पर ना लें, बच्चों को शुरू से आदत डालें घर के कामों में मदद करने की। यदि बच्चे बड़े हो गए हैं तब भी देर नहीं हुई है। उन्हें घरेलू ज़िम्मेदारियों में शामिल करें। अपने जीवनसाथी से भी बात करें।

वे जितने भी व्यस्त रहते हों, कम से कम सुबह की पहली चाय और छुट्टी के दिन आपका हाथ बंटाने का जिम्मा ले ही सकते हैं। इससे ‘तुम करती ही क्या हो’ का जवाब ख़ुद-ब-ख़ुद मिल जाएगा। वैसे भी, खाना पकाना, सफ़ाई करना अब जीवन-कौशल हैं जो हर व्यक्ति को आने ही चाहिए।

अपना ध्यान रखें, शौक़ पूरे करें, सुकून तलाशें

अक्सर गृहिणियों की आदत होती है सुबह के कामों के चक्कर में नाश्ता ना करना, दोपहर में सबको खिलाकर ही खाना खाना, भले ही कोई घर के बाहर गया हो। इसके अलावा, वे मां बनते ही जैसे अपनी अिभरुचियां भी भुला बैठती हैं। एक समय के बाद परिजनों को भी लगने लगता है कि गृहिणी के न तो शौक़ हैं, न ही कोई पसंद-नापसंद। वैसे भी, जब वे स्वयं ही अपनी उपेक्षा करती दिखती हैं तो औरों का ध्यान भी उनकी ख़ुशी-नाख़ुशी की तरफ़ नहीं जाता। जैसा कि एक अंग्रेज़ी कहावत है, ख़ाली प्याले से आप चाय नहीं परोस सकते, उसी तरह आप अगर भीतर से स्वस्थ और सुकून में नहीं हैं तो आप परिवार की देखभाल भी सही तरीक़े से नहीं कर सकेंगी।

अत: अपनी खुराक पर ध्यान दें, अपने शौक़ पूरे करें, किताब पढ़ें, गाने सुनें, बाग़वानी करें। परिवार वालों को स्पष्ट दिखना चाहिए कि आपकी पसंद-नापसंद, अभिरुचियां और ख़ुशियां हैं।

अपना ज्ञान और कौशल बढ़ाएं, निर्भरता कम करें

प्रतिदिन अख़बार ज़रूर पढ़ें, आसपास होने वाले बदलावों के साथ चलें और समझें। इससे आप ख़ासतौर पर बच्चों से उनके रुचि अनुसार विषयों पर बात कर सकेंगी। उन्हें पता चलेगा कि मां भी देश-दुनिया की जानकारी रखती हैं और जागरूक हैं। अपना ज्ञान बढ़ाएं। ज़रूरी नहीं कि आप कॉलेज में ही दाख़िला ले लें। नए विषयों पर जानकारी रखना, नई विधाएं सीखना और अपनी दक्षता को बढ़ाना आपके आत्मविश्वास को मज़बूती प्रदान करेगा।

इंटरनेट के ज़माने में यह बहुत आसान है। इससे परिवार में आपकी पूछ-परख भी बढ़ेगी। किसी भी नई तकनीक से भागें नहीं, सीखने से साफ़ इनकार न कर दें, बल्कि आगे बढ़कर सीखने में रुचि दिखाएं- चाहे वह स्मार्टफोन चलाना हो या फिर वाहन।

बजट की समझ बढ़ाएं, निवेश साधनों को समझें

एक कुशल गृहिणी हमेशा से ही घर का ख़र्च, सामाजिक लेनदेन संभालती आई है। यह अपने आप में एक बहुत महत्वपूर्ण कौशल है। अब एक क़दम आगे बढ़कर निवेश के साधनों की जानकारी प्राप्त करें। बैंकिंग से संबंधित सामान्य कामकाज स्वयं करने की कोशिश करें। वित्त से जुड़े विषयों पर पति और बड़े बच्चों से चर्चा करें। घर में निवेश को लेकर कोई बड़ा निर्णय होना है तो पर्याप्त सूचनाएं अर्जित करके अपने सुझाव अवश्य रखें। गणित लगाना, लेखा-जोखा रखना, आय-व्यय की गणना करना, इन्वेस्टमेंट को जांचना-परखना, इन सबमें भी रुचि लें।

हमेशा ध्यान रखें कि जैसे परिवार की ख़ुशी में आपकी ख़ुशी है, वैसे ही परिवार की ख़ुशियां भी आपकी ख़ुशी से जुड़ी हैं।

आप प्रसन्न रहेंगी, दूसरों की नज़रों में अपने लिए सम्मान पाएंगी, ख़ुद को अहमियत मिलती देखेंगी, तो स्वाभाविक ही परिवार के लिए बेहतर योगदान दे पाएंगी।

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