होली का त्यौहार पूरे भारतवर्ष व अन्य देशों में भी बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है यह पर्व साल में आने वाले सबसे बड़े त्योहारों में से एक है इसे आनंद और उल्लास का पर्व भी कहा जाता है। सांस्कृतिक रूप से ये एक ऐसा त्यौहार है जिसे सभी मिलकर मनाते है सांस्कृतिक महत्व होने के साथ-साथ होली के त्यौहार का धार्मिक महत्व भी बहुत अधिक है. मान्यता है कि इस दिन खुद को भगवान मान बैठे हरिण्यकशिपु ने भगवान की भक्ति में लीन अपने ही पुत्र प्रह्लाद को अपनी बहन होलिका के जरिये जिंदा जला देना चाहा था लेकिन भगवान ने भक्त पर अपनी कृपा की और प्रह्लाद के लिये बनाई चिता में स्वयं होलिका जल मरी। इसलिये होली के दिन खासतौर पर होलिका दहन और पूजा की परंपरा भी है। होलिका दहन से अगले दिन रंगों से खेला जाता है इसलिये इसे रंगवाली होली और दुलहंडी भी कहा जाता है।
होली कब मनाई जाती है
हिन्दू पंचांग की माने तो होली का त्यौहार फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. जिसे कई जगहों पर बसंत उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। वही खेलने वाली होली पूर्णिमा के अगले दिन चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। जो होली पूर्णिमा तिथि के दिन खेली जाती है उसे छोटी होली और होलिका दहन के नाम से भी जाना जाता है. होली का यह पर्व हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद की नारायण भक्ति हो समर्पित है। जो सत्य और अच्छाई की जीत की शिक्षा देता है.
होलिका दहन तिथि
शुभ मुहूर्त 2024
घर में सुख-शांति, समृद्धि, संतान प्राप्ति आदि के लिये महिलाएं इस दिन होली की पूजा करती हैं। होलिका दहन के लिये लगभग एक महीने पहले से तैयारियां शुरु कर दी जाती हैं। साल 2024 में होली के शुभ मुहूर्त इस प्रकार है.
- हिन्दू पंचांग के अनुसार 18 मार्च 2024 बृहस्पतिवार से होलाष्टक शुरू होंगे.
- साल 2024 में होलिका दहन 24 मार्च, रविवार और होली 25 मार्च, सोमवार के दिन किया जाएगा.
होलिका दहन
जरूरी नियम
शास्त्रों के अनुसार कुछ ऐसे ख़ास और जरूरी नियम बताये गए है जिनका पालन होलिका दहन के समय करना जरूरी बताया गया है तो चलिए जानते है क्या है होलिका दहन से समय के जरूरी नियम|
- पहला नियम उस दिन भद्रा न हो।
- दूसरा पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए अर्थात उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि जरूर होनी चाहिए।
- होलिका दहन के अगले दिन रंग खेलने का विधान है जिसे सभी के साथ मिलकर अबीर-गुलाल के साथ खेलना चाहिए.
होलिका दहन
पूजा सामग्री
होली में होलिका दहन की पूजा का विशेष महत्व होता है जिसके लिए निम्न पूजन सामग्री की आवस्यकता होती है.
- घी से भरा दिया, बाती
- धुप, बत्ती
- पुष्प
- चन्दन और रोली
- मिठाइयाँ
- साबुत चावल
- पानी से भरा लोटा
- मूंग की दाल
- सूखी कच्ची हल्दी
- कच्चा सूत
- पांच प्रकार के अनाज
- गुलाल
- काली उड़द की दाल
- काले तिल
- जौं, गुजिया
होलिका दहन
पूजा विधि
- पौराणिक कथाओं के अनुसार होली के त्यौहार में होलिका दहन का विशेष महत्व होता है.
- होलिका दहन से पहले होली का पूजन किया जाता है.
- पूजा के समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठे.
- होलिका पूजन के लिए अपनी पूजा पद्धति के अनुसार माला, रोली, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, पांच प्रकार के अनाज में गेहूं की बालियां और एक लोटा में जल लेकर होलिका के पास रखने के बाद होलिका दहन करे.
- सभी पूजन सामग्री व गुलाल आदि जलती होली में अर्पण करें.
- इसके बाद गेहूं की बालियां अग्नि में भूनें।
- ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम: का जाप करते हुए होलिका की 3 से 7 परिक्रमा करेंं.
- परिक्रमा के समय लोटे से जल लगातार गिराते जाएं।
- होलिका दहन के बाद जली हुई राख को अगले दिन प्रात: काल घर में लाना शुभ माना जाता है।
होली की कहानी
होली की कहानी का संबंद्ध श्री हरि विष्णु जी से है। नारद पुराण में बताया गया है की आदिकाल में हिरण्यकश्यप नामक एक राक्षस हुआ करता था। जो खुद को ईश्वर से भी बड़ा समझता था। वह चाहता था कि लोग केवल उसकी पूजा करें। लेकिन उसका खुद का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भगवान का परम भक्त था। ये भक्ति उसे उसकी मां से विरासत के रूप में मिली थी।
हिरण्यकश्यप के लिए यह बड़ी चिंता की बात थी कि उसका स्वयं का पुत्र विष्णु भक्त कैसे हो गया और वह कैसे उसे इस भक्ति के मार्ग से हटाए। हिरण्यकश्यप ने जब अपने पुत्र को विष्णु भक्ति छोड़ने के लिए कहा तो प्रह्लाद ना माना परन्तु उसके अथक प्रयासों के बाद भी वह सफल नहीं हो सका।
कई बार समझाने के बाद भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकश्यप ने अपने ही बेटे को जान से मारने की योजना बनायीं बार-बार अपनी कोशिशों से नाकाम होकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद ली जिसे भगवान शंकर से एक ऐसा वरदानी चादर मिला था जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। दोनों भाई बहिन में तय हुआ कि प्रह्लाद को होलिका के साथ बैठाकर अग्निन में स्वाहा कर दिया जाएगा।
होलिका अपनी चादर को ओढकर प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गयी। लेकिन विष्णु जी के चमत्कार से वह चादर उड़ कर प्रह्लाद पर आ गई जिससे प्रह्लाद की जान बच गयी और होलिका जल गई। इसी दिनके बाद से होली की संध्या को अग्नि जलाकर होलिका दहन का आयोजन किया जाता है।