दिव्येंदु शर्मा, प्रतीक गांधी और अविनाश तिवारी स्टारर फिल्म मडगांव एक्सप्रेस रिलीज हो गई है। कॉमेडी जॉनर इस फिल्म की लेंथ 2 घंटे 23 मिनट है। दैनिक भास्कर ने फिल्म को 5 में से 3.5 स्टार रेटिंग दी है।
फिल्म की कहानी क्या है?
यह कहानी तीन दोस्तों डोडो (दिव्येंदु) पिंकू (प्रतीक गांधी) और आयुष (अविनाश तिवारी) की है। तीनों का बचपन से गोवा घूमने का सपना है। हर बार किसी न किसी वजह से उनकी यह ट्रिप पूरी नहीं हो पाती। उम्र बढ़ने के साथ ही आयुष और पिंकू विदेश निकल जाते हैं। उन्हें वहां अच्छी नौकरी मिल जाती है। यहां रह जाता है बस डोडो। डोडो को कुछ काम नहीं मिलता। वो दिनभर घर पर बैठ कर फोटोशॉप की मदद से सेलिब्रिटीज के साथ पिक्चर एडिट करता है। अपने आप को रईस और फेमस दिखाने के लिए वो इन पिक्चर्स को सोशल मीडिया पर पोस्ट करता है।
आयुष और पिंकू को भी यही लगता है कि उनका दोस्त उन्हीं की तरह फेमस और पैसे वाला इंसान बन गया है। वो दोनों वापस भारत आने का प्लान करते हैं। डोडो उन्हें अपनी रियलिटी नहीं बताता। वो उन्हें झूठ बोलकर मडगांव एक्सप्रेस में बिठा देता है और तीनों दोस्त गोवा के लिए निकल जाते हैं।
गोवा जाने के असली कहानी शुरू होती है। तीनों गलती से ड्रग्स के पचड़े में फंस जाते हैं। गोवा के लोकल गुंडे उनके पीछे पड़ जाते हैं। यहीं उनकी मुलाकात ताशा यानी नोरा फतेही से होती है। अब तीनोंं दोस्त उन गुंडों के चंगुल से बच पाते हैं कि नहीं। क्या आयुष और पिंकू को डोडो की सच्चाई पता चल पाएगी। कहानी अंत तक इसी तरफ रुख करती है।
स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है?
दिव्येंदु शर्मा, प्रतीक गांधी और अविनाश तिवारी तीनों ने कमाल की एक्टिंग की है। खासकर दिव्येंदु ने अपनी कॉमिक टाइमिंग से अंत तक हंसाया है। प्रतीक गांधी ने अपनी एक्टिंग में डायवर्सिटी दिखाई है। एक साधारण सीधा-साधा इंसान ड्रग्स के नशे में कब राउडी जैसा बिहेव करने लगता है, यह देख कर आपको बहुत मजा आने वाला है।
अविनाश तिवारी का रोल दोनों के मुकाबले थोड़ा सीरियस है। उनके एक्सप्रेशन काफी नेचुरल हैं। अविनाश को देख कर आपको यकीन नहीं होगा कि ये वहीं एक्टर हैं, जिन्होंने वेब सीरीज खाकी में विलेन चंदन का किरदार निभाया था। नोरा फतेही को कम स्क्रीन टाइम मिला है, लेकिन कम समय में ही उन्होंने अच्छा स्क्रीन प्रेजेंस दिखाया है। फिल्म में रेमो डिसूजा का भी कैमियो है।
डायरेक्शन कैसा है?
कुणाल खेमू ने पहली बार किसी फिल्म का डायरेक्शन किया है। अपनी पहली डायरेक्टोरियल फिल्म में ही उन्होंने कमाल कर दिया है। एक सिंपल सी कहानी को उन्होंने इतने दिलचस्प अंदाज में दिखाया है कि उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। हालांकि एकाध सीन ऐसे हैं, जिसे दिखाने का कोई तुक नहीं बनता था। एक दो सीन में बेवजह संस्पेंस दिखाने की कोशिश की गई है, जो बेमतलब लगते हैं।
फिल्म का म्यूजिक कैसा है?
फिल्म के गाने और बेहतर हो सकते थे। फरहान अख्तर की फिल्मों के गाने अमूमन लोगों को याद रह जाते हैं। इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है। गाने ऐसे हैं जो सीक्वेंस के हिसाब से सुनने में अच्छे लगे हैं। गाने ऐसे नहीं हैं जो फिल्म खत्म होने के बाद याद रखें जाएं।
फाइनल वर्डिक्ट, देखें या नहीं?
इसमें कोई शक नहीं है कि फिल्म देखने के बाद आपको मजा जरूर आएगा। कई सीन में आप हंस कर लोट-पोट हो जाएंगे। युवाओं को यह फिल्म बहुत पसंद आएगी। अगर आप कॉमेडी फिल्मों के शौकीन हैं, तो बिना देर किए इसके लिए जा सकते हैं। कहीं-कहीं डार्क कॉमेडी भी दिखाई गई है, इसलिए फैमिली के साथ देखने पर कुछ जगह असहज हो सकते हैं। बाकी, कॉमेडी के नजरिए से यह एक मस्ट वॉच फिल्म है।